गुरु विरजानन्द जी की जन्मभूमि में कार्यरत गुरु विरजानन्द गुरुकुल महाविद्यालय, करतारपुर निरंतर 50 वर्षों से संस्कृत अध्यापन में प्रवृत्त है। वर्तमान में भी लगभग 200 जितने विद्यार्थियों के पठन पाठन भोजन- आवास आदि की व्यवस्था की जा रही है। ऐसी व्यवस्था वन्दनीय है और समाज के लिए आशीर्वाद समान है। वर्तमान समय में संस्कृत का अध्यापन अनिवार्य बन रहा है। भारतीय संस्कृति में संस्कृत की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। व्यक्ति में सत्य, अहिंसा जैसे सामाजिक सुव्यवस्थाप्रद सदगुणों का प्रादुर्भाव हो, यही भारतीय शास्त्रों का लक्ष्य रहा है। संस्कृत भाषा को लोकभाषा बनाएं संस्कृत भाषा के दैनिक प्रयोग से एक विशेष प्रकार की ऊर्जा मिलती है। इस ऊर्जा से व्यक्तित्व में तेजस्विता क्षमा, धैर्य और पवित्रता का संचार होता है। बैरभावना और अभिमान जैसे अवगुणों से मुक्ति मिलती है, जिससे समाज में सुख, शांति और सामाजिक समरसता की स्थापना होती है। विश्व को विद्वान, विचारक, चितक, ज्ञानी और वैज्ञानिक प्रदान करने में भारतभूमि अग्रसर रही है। संस्कृत से विश्व में शांति और सौहार्द का वातावरण बनेगा और वसुधैव कुटुम्बकम की विभावना की वास्तविक अनुभूति होगी। गुरु विरजानन्द गुरुकुल महाविद्यालय करतारपुर की नवीन वितरण पत्रिका के प्रकाशन पर मैं शुभकामनाएं देता हूं। यह महाविद्यालय आने वाले समय में समाज निर्माण और राष्ट्र निर्माण में उत्तमोत्तम सहयोग प्रदान करता रहेगा, ऐसी अभ्यर्थना व्यक्त करता हूं।


आचार्य देवव्रत

राज्यपाल गुजरात प्रान्त